सीखना हर इंसान का जन्मजात गुण है , हम सभी मां के पेट में रहने के समय से सीखना शुरु कर देते है और यह प्रक्रिया पूरे जीवनकाल चलती रहती है...
जीवन में हमारी सफलता या असफलता का कारण यही सीखने से पाया हुआ ग्यान होता है।
किसी भी काम की शुरुआत हमारे ग्यान और नया सीखने के हुनर से ही होती है, हम जितना ज्यादा सीखते हैं, उतना ही अधिक हमारा ग्यान बढ़ता है, अधिक से अधिक और सही ग्यान हमें सफलता की मंजिल तक पहुंचा देता है।
माँ बाप और बड़े बुजुर्गों से मिलने वाला ग्यान हमारे संस्कार बनाता है जो हमारे जीवन का आधार बन जाता है, स्कूली शिक्षा इसे और निखारती है।दुनियादारी का ग्यान इसी से ही होता , रोजाना के हमारे कामकाज, व्यवहार से हमें हमेशा कुछ न कुछ सीखने को ही मिलता है। यही हमारे अनुभवों का आधार बनता है, जीवन और दुनिया के प्रति हमारे द्रष्टिकोण का कारण बनता है....
हमारी भौतिक सफलता अब हमारी स्कूली शिक्षा पर भी निर्भर हो गयी ।
जितनी ज्यादा और अच्छी स्कूली शिक्षा होगी कैरियर भी उतना बढ़िया होने की संभावना बढ़ जाती है। यही कारण है कि हर माँ बाप अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा और ऊंची से ऊँची शिक्षा देना चाहते हैं...
एक बात नोट करने वाली है कि स्कूल में एक कक्षा में कई विद्धार्थी होतें हैं, एक विषय को पढ़ाने वाला एक ही टीचर होता है, एक पीरियड का समय भी समान ही होता है पढ़ाने का तरीका एक भी होता है.. पर क्लास में पहले स्थान से तीसरे स्थान पाने वाले हर बार लगभग उन्हीं विद्यार्थियों का नाम आता है...
ऐसा क्यों ?
ऐसा होने का कारण एक ही है- हमारी सीखने की ईच्छा , ललक और हमारी तैयारी....
विद्धार्थी जीवन में हो सकता है हमें इन बातों का पता नहीं थीं, या किसी ने हमें नहीं बताया हो...
आप वर्तमान में जो कुछ कर रहे हैं और उस काम के बारें अगर सीखने की जरूरत है तो.. विद्धार्थी जीवन की वह गलती न दोहरावें,, इसका अंजाम भयानक है, इतना कि इसे आप सही नही कर सकते हैं...
सीखने के लिये आप अपने आपको तैयार कीजिये, सीखने को सर्वोपरि मानिये, सीखने के लिये वक्त निकालिये....।
अगर जीवन में आप कुछ करना चाहते हैं या पाना चाहते हैं तो आपको उस काम के बारें सीखना तो पड़ेगा ही..
इसका कोई विकल्प नहीं है..
आपकी सफलता और सुख समृद्धि आपके सीखने पर ही निर्भर है...
आप ही आपके भाग्य विधाता हैंं ..
आप अपने भाग्य के लिये जितना जिम्मेदार दूसरों को मानते हैं, उससे कई गुना जिम्मेदार आप खुद हैं और यह केवल आपकी सीखने की प्रवृत्ति ही है..
जो आपकी इच्छा पर निर्भर है और यह ईच्छा तो आपकी गुलाम है। आप इसके मालिक हैं...
देखिये कही ईच्छा या मन आपका मालिक तो नही बन बेठा है...
ये बड़े खराब मालिक होते हैं, अगर नौकर मलिक बन जाय ,तो अंजाम क्या होगा !
खुद सोच लीजिये...
आप मालिक हैं , तो सही मालिक ही बनिये, नही तो ये इच्छा या मनमौजी स्वभाव आपको कहीं का नहीं छोड़ेगा ...
ईच्छा या मनमौजी स्वभाव को काबू में रखने का केवल एक ही हथियार है-
सीखना.... सीखना...सीखते रहना....
तो सीखते रहने के लिये हर दम हर वक्त तैयार रहिये...
यही सफल जीवन की पहली सीढ़ी है...
सदैव की भाँति आपका शुभाकांक्षी...
रवीन्द्र भट्ट
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