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Jan 23, 2018

अपने साथ अपने लोगों को लेकर चलें

शुभ प्रभात🙏😀

*अपने साथ अपने लोगों को लेकर चलें*

बहुत  समय  पहले  की  बात  है  एक  विख्यात  ऋषि  गुरुकुल  में  बालकों  को  शिक्षा  प्रदान  किया  करते  थे. उनके गुरुकुल में बड़े-बड़े राजामहाराजाओं के पुत्रों से  लेकर साधारण परिवार के लड़के भीपढ़ा करते थे। वर्षों से शिक्षा प्राप्त कर रहे शिष्यों की शिक्षा आज पूर्ण हो रही थी और सभी बड़ेउत्साह के साथ अपने अपने घरों को लौटने की तैयारी कर रहे थे कि तभी ऋषिवर की तेज आवाजसभी के कानो में पड़ी,

“आप सभी मैदानमें एकत्रित हो जाएं।“

आदेश सुनते हीशिष्यों ने ऐसा ही किया।

ऋषिवर बोले, “प्रिय  शिष्यों, आज  इस  गुरुकुल  में  आपका  अंतिम  दिन  है. मैं  चाहता  हूँ  कि  यहाँ  से  प्रस्थान  करने  से  पहले  आप  सभी  एक  दौड़  में  हिस्सा  लें. यह  एक  बाधा  दौड़  होगी  और  इसमें  आपको  कहीं  कूदना  तो  कहीं  पानी  में दौड़ना  होगा  और  इसके  आखिरी  हिस्से  में  आपको  एक  अँधेरी  सुरंग  से  भी  गुजरना  पड़ेगा.”

तो  क्या  आप  सब  तैयार  हैं ?”

”हाँ, हम  तैयार  हैं”, शिष्य  एक  स्वर  में  बोले.

दौड़ शुरू  हुई.

सभी  तेजी  से  भागने  लगे. वे  तमाम  बाधाओं  को  पार  करते  हुए अंत  में  सुरंग  के  पास  पहुंचे. वहाँ  बहुत  अँधेरा  था  और  उसमे  जगह जगह  नुकीले  पत्थर  भी  पड़े  थे  जिनके  चुभने  पर  असहनीय  पीड़ा  का  अनुभव  होता  था. सभी  असमंजस  में  पड़  गए, जहाँ  अभी  तक  दौड़  में  सभी  एक  सामान  बर्ताव  कर  रहे थे  वहीँ  अब  सभी  अलग अलग  व्यवहार  करने  लगे ; खैर, सभी ने जैसे-तैसे   दौड़  ख़त्म  की और ऋषिवर के समक्ष एकत्रित हुए।

 “पुत्रों ! मैं देख  रहा  हूँ  कि  कुछ  लोगों  ने  दौड़  बहुत  जल्दी  पूरी  कर  ली  और  कुछ  ने  बहुत अधिक  समय  लिया, भला   ऐसा  क्यों  ?”, ऋषिवर ने प्रश्न किया।

यह सुनकर एक  शिष्य  बोला, “गुरु  जी,
*हम  सभी  लगभग  साथ साथ  ही  दौड़  रहे  थे  पर  सुरंग  में  पहुचते  ही  स्थिति  बदल  गयी. कोई  दुसरे  को  धक्का  देकर  आगे  निकलने  में   लगा  हुआ  था  तो  कोई  संभलसंभल  कर  आगे  बढ़  रहा  था. और  कुछ तो ऐसे  भी  थे  जो  पैरों  में  चुभ  रहे  पत्थरों  को  उठा उठा  कर  अपनी  जेब  में  रख  ले  रहे  थे  ताकि  बाद  में  आने  वाले  लोगों  को  पीड़ा  ना  सहनी  पड़े.* इसलिए सब ने अलग अलग समय में दौड़ पूरी की.”

“ठीक है ! जिन लोगों  ने  पत्थर  उठाये  हैं  वे  आगे  आएं  और  मुझे  वो  पत्थर  दिखाएँ“, ऋषिवर  ने  आदेश  दिया.

आदेश  सुनते  ही  कुछ  शिष्य  सामने  आये  और  पत्थर  निकालने  लगे. पर  ये  क्या  जिन्हे  वे  पत्थर  समझ  रहे  थे  दरअसल  वे  बहुमूल्य  हीरे  थे.  सभी आश्चर्य  में  पड़  गए  और  ऋषिवर  की   तरफ  देखने  लगे.

“मैं  जानता  हूँ  आप  लोग  इन  हीरों  के  देखकर  आश्चर्य  में  पड़  गए  हैं.” ऋषिवर  बोले।

“दरअसल इन्हें मैंने ही उस सुरंग में डाला था,और *यह दूसरों के विषय में सोचने वालेशिष्यों को मेरा इनाम है।"*

*इस दौड़ से हमे यह समझने की जरुरत है कि-*

*आज के युग में यदि हम आगे बढ़ना चाहतें हैं, या हम अपने सपनो को पूरा करना चाहतें हैं तो जरुरी है की हम अपने साथ अपने लोगों को लेकर चलें, क्योंकि यदि हमारे लोग आगे बढ़ेंगे तो हम तो आगेबढ़ेंगे ही *

*यही सोच ही सबको आगे बढ़ने में सबको मदद.करती है सबको आसानी होगी आगे बढ़ने में..*

*जब अधिक से अधिक लोग* *सफल होंगे तो हर व्यक्ति का ही अधिक से अधिक फायदा होगा..*

ऐसा कैसा हो सकता है?*

*जरा आप सोचें तो सही ,, आपको उत्तर अपने आप मिल जायेंगे..*

*यही सार्थक जीवन है ,इसे ही धर्म कहते हैं, धर्म का मूल यही भावना है, सभी मानवीय गुणों का कारण और  परिणाम है... यह बड़ी गंभीरतापूर्वक समझने की जरुरत है...*

आपका शुभाकांक्षी रवीन्द्र भट्ट

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