हम सभी इंसान बहुत बड़ी आशाओं, सपनों और हसरतों के मालिक हैं ,गुजरते समय के साथ साथ हम भी विकसित होते रहते हैं , बीच बीच कुछ न कुछ समस्यायें आकर हमारी प्रगति की गति को कुछ वक्त के लिये रोक भी देती हैं।
अनुभवों और दुनियादारी को देखते हुये इन समस्यायों का अनुमान लगाना कोई मुश्किल काम भी नहीं हैं।
ये समस्याये़ 90% से अधिक हैल्थ या रूपया पैसों से संबंधित होती हैं और दुनिया भर मे करीब 80% लोग इनका सामना जिदंगी भर करते रहते हैं ।
अचरज की बात तो यह है कि इतनी विकराल समस्या की और इसके समाधान के लिये हमारी शिक्षा व्यवस्था में कोई औपचारिक स्थान और योजना नहीं है।
बल्कि इतनी बड़ी बात हमारे विवेक के ऊपर छोड़ दी गई है ।
जबकि होना यह चाहिये था कि प्राथमिक कक्षा से लेकर कम से कम 12वीं कक्षा तक हैल्थ और वित्त संबधी पूरा एक एक विषय होना चाहिये था ।
हमारी शिक्षा हमें नौकरी करने की सोच पर टिकी हुई है , हमें जिदगी में दुनियादारी और मुश्किलों का सामना करने के कौशल देने में हमारी शिक्षा प्रणाली समर्थ नहीं हो रही है।
इसलिये हमें ही यह जिम्मेदारी उठानी होगी अपने, अपने परिवार की खुशहाली की खातिर, साथ ही साथ यह हमारी सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी भी बन जाती है ।
सबसे पहले हमें स्वास्थ्य की मूल बातें पता होनी चाहिये और इसके बारें में अधिक से अधिक जानकारियाँ हासिल करने के साथ अपने अपने घर में दैनिक बातचीत में इनको शामिल करना होगा ।अभी तक हम बीमारियों और दवाईयों को ही अपनी बातचीत का हिस्सा बनाते आ रहे हैं , हमें अब यह बदलनी होगी बल्कि आरोग्य यानी वैलनेस को बातचीत का विषय बनाना होगा ।
आरोग्य यानी वैलनेस मतलब है बीमार ही न होना और शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ्य होना ।
हर इसांन यही तो चाहता है अपने लिये, अपने माँ - बाप, पति या पत्नी , बच्चों, भाई बहिनों आदि सबके लिये।
क्या आप भी ऐसा ही चाहते हैं?
अगर आप ऐसा ही चाहते हैं तो इंतजार कीजिये अगले अंक का जिसमें स्वस्थ्य जीवन के 4 मूल सिद्धातों के बारें मे बात करूगाँ.
शेष अगले अंक में....
आपके सपरिवार आरोग्य , दीर्घ सुखी - समृद्ध जीवन की शुभकामनाओं के साथ.....
No comments:
Post a Comment