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Aug 13, 2017

कैसी सोच और समझ के स्वामी हम?

एक बार मैनें कहीं पढ़ा था कि, बात-विचार और इंसानी समझ दो प्रकार की होती है ।
जैसे कोईभी बात या विचार या तो गलत होगा या सही, उसी प्रकार समझ भी सही या गलत होती है ।
गलत बात या विचार जल्दी और तेजी से समझ में आता है और फैलता भी तेजी से है ।और तो और बुरी बातों में बड़ी ताकत होती है अपनी ओर खींचने में।
सही बात जल्दी समझ में हर इंसान को नही आती और फैलती भी धीरे धीरे  है।
अगर किसी को सही बात जल्दी समझ में आ रही है तो यकीन मानिये, आप बुध्दिमान  तो हैं ही ,साथ ही आप पर ईश्वरीय कृपा भी है ।
ये बातें हकीकत में हम पर लागू होती हैं ,जैसे-
सबको पता है कि नशा करना आदि खराब है पर कितने हैं जो यह सब जानकर भी नशा करते हैं।
जो भी दुनिया में इंकलाब लाये हैं या बड़े कामयाब हैं, उन्होने सबसे पहले अपनी बुरी बातों और विचारों पर विजय हासिल की और तब सही विचारों की शक्ति से से बुलंदी को पा लेते हैं।
इन सब बातों से साबित होता है कि विचारों में बड़ी शक्ति होती है।
इतिहास इह बात का गवाह भी कि आजतक का सांसारिक, वैग्यानिक, आध्यात्मिक  विकास का मूल विचार ही हैं ।
विचार ही जन्मदाता हैं कर्म के और कर्म जन्मदाता हैं फल के, और फल का अधिकारी भी वही विचारों को रचने वाला ।
यह आप पर ही निर्भर करता है कि आप किस प्रकार का फल चाहते हैं ।
आपके जैसे विचार होंगे, फल भी वैसा ही होगा ।
विचारों में बड़ी गजब की शक्ति होती , हमें पता भी नही लगता और ये विचार अपना काम कर चुके होते हैं ।
जरा सोचिये या याद करिये वो वक्त जब किसी ने आपके साथ सबसे बुरा किया था!!!
देखो, आपके विचार बदल रहे हैं और आपकी शारीरिक भाव भंगिमा  और वाणी भी बदल रही है ।
अब जरा याद करिये उस बक्त को जब आपको सबसे अधिक खुशी मिली थी!!!!!
अब फिर आपके विचार बदलने लगे और उसका फल भी बदलने लगा ।
आप अपने विचारों के स्वामी हैं, यह बड़ी जिम्मेदारी भी है ।

सोचिये ध्यान से, विचार खेत हैं, बीज हैं ।
करम खाद -पानी, आप मालिक
इस खेत के करिये ,अपनी मनमानी ।

सोच -Thought Process

सोच -Thought Process-

हर व्यक्ति का जीवन अपने आस पास के माहौल से बहुत प्रभावित होता रहता है ।लेकिन एक  बात से उसके जीवन की दशा और दिशा तय होती है, वह है उसकी सोच । यानी उसकी सोच किस प्रकार की है ।
सोच किसी विरासत की मोहताज नही होती है ,लेकिन कुछ बातें हमारी सोच को पूरी तरह से बदल भी देती है ।
हम अपने जीवन को किस तरह जीना चाहते हैं यह हमारी सोच से निर्धारित होता है, सोच हमारी कर्मों को आकार देती है। कर्म ही फलदाता हैं।
सोचना एक स्वाभाविक प्रकृति है और किस प्रकार की सोच बनानी चाहिये, यह एक कला है ।
दुनिया में सभी महान व्यक्तियों की सफलता उनकी सोच का परिणाम है ।
यह एक सोच का परिणाम था कि एक राजकुमार ,राजपाट छोड़कर जीवन के रहस्य को समझने कठिन तपस्या करने चल पड़ा। उस महान आत्मा को दुनिया महात्मा बुद्ध के नाम से जानती है ।
एक बालक शिवलिंग को एक छोटे से चूहे से अपनी सुरक्षा न कर पाते देखकर , अपनी सोच को उस ऊँचाई पर ले जाता है ,जिसने अंधविश्वासों की दीवारों को गिराकर अपना नाम अमर कर दिया- महर्षि दयानंद सरस्वती के नाम से ।
ईश्वर को समझने की जिग्यासा को शांत करने की धुन मे एक बालक अपने गुरू स्वामी रामतीर्थ से भगवान को दिखाने की जिद, उस बालक की सोच इस तरह बदल जाती है कि वह बालक को दुनिया महान चिंतक , ग्यानवान स्वामी विवेकानंद के जानती है ।

ऐसे अनेक उदाहरण है , जहाँ सोचने के कारण उस व्यक्ति की जीवन ऊज्जवल बन कर अमर और करोडो़ लोगों के जीवन को दिशा और दशा देने में समर्थ बन गया 
सोच किसी की अमीरी, गरीबी, शिक्षा, अशिक्षा की मोहताज नहीं है ।
महर्षि बाल्मिकी, कालीदास , तुलसीदास, कबीर, अब्दुल कलाम आजाद आदि लोगों का जीवन परिचय किसी परिचय का मोहताज नहीं है ।

आप क्या और कैसे जीवन के स्वामी बनना चाहते हैं यह केवल आपकी सोच से निर्धारित होता है । 
अगर आपने अपने जीवन को सोच के खाँचे में फिट कर दिया है ,तो उसेआगे ले जाने का काम आपकी कल्पना के पंख , आपके ग्यान की सवारी करेगी ।

अगर अभी तक सोचा नहीं है तो यह बड़ी विकट स्थिति वैसी ही जैसे एक जहाज अपने समुद्र पत्तन से चल तो पड़ा है पर मंजिल का पता नहीं है ।

ऐसे में वह जहाज समुद्र में इधर उधर चक्कर ही लगाता रहेगा पर कभी भी मंजिल पता न होने से भटकता रहेगा ।
आज ज्यादातर लोगों का जीवन ऐसे ही है , कोई ठोस सोच, मंजिल , योजना न होने के कारण , एक सफल ,संपूर्ण समृध्द जीवन जी नहीं पाते है ।

शेष  अगली बार....
आपका शुभाकाक्षीं....

सोच - भाग्यविधाता जीवन की | Power of thinking

सोच - भाग्यविधाता  जीवन की.....


यह बह्रमांड ईश्वर की किसी न किसी सोच का ही परिणाम है । ईश्वर ने इस पृथ्वी में सोचने की यह ताकत केवल इंसान में ही दी है ।
हर इसांन का जीवन अपनी अपनी सोच का परिणाम है ।
मानव सभ्यता की विकास यात्रा इसका प्रमाण है ।यह इंसानी सोच से ही संभव हुआ है कि हम आधुनिक विकास से अपने जीवन स्तर को निरंतर ऊँचा कर पा रहे हैं।
हर इसांन की सोच देश, काल और परिस्थितियों से बदलती रहती है ।
सोच भी दो तरीके की होती है

एक स्थूल  सोच होती है ,जो हमारे मूड के हिसाब से बदलती रहती है ।जैसे- गुस्सा करना, आवेश में आकर नुकसान करना, सुखः दुःख महसूस करना , क्षणिक आवेश आदि
दूसरी सोच  सूक्ष्म सोच होती है। इससे ही जीवन को दिशा और दशा मिलती है। हम अपने जीवन में कैसे बनना चाहते हैं या बनते है?

सूक्ष्म सोच संस्कारों, परवरिश, पारिवारिक माहौल, शिक्षा, संगती,  दिमागी संतुलन और दिमागी खुराक से बनती है ।
दोनों सोचों का एक दूसरे पर गहरा असर पड़ता है।
सूक्ष्म सोच चिर स्थाई होती है और इसको बदलना आसान नही होता, किसी गंभीर घटना या दिल को चुभने जैसी बातों से इसमें बदलाव हो सकता है ।
हम जैसा सोचते हैं, हम वैसे ही बन जाते हैं।
यह सोच ही है जिसके कारण कोई व्यक्ति अपराधी बन जाता है तो कोई साधु या डाक्टर, तो कोई वैग्यानिक या दार्शनिक जैसे बन जाते हैं ।
आपकी सोच  जैसी है वैसे ही आपका दुनिया देखने का नजरिया बन जाता है ।
सोच चुम्बक जैसा काम करती है ।
जैसा आप सोचने लगते हैं,वैसे ही आपके काम होने लगते हैं, वैसीे ही आपको घटनायें घटित होते हुये दिखने लगती हैं, वैसे ही लोग भी आपको मिलने लगते हैं, वैसे ही परिणाम मिलने शुरू हो जाते हैं ।

अच्छे लोगों को अच्छे लोग मिलने लगते हैं, तो खराब आदतों और मानसिकता वालों को वैसे ही लोग मिल जाते हैं ।
आप जैसा बनना चाहते हैं वैसी ही सोच बनाइये, जीत आपकी सोच की ही होगी ।
जो लोग जैसे हैं , उनकी सोच वैसी ही है ।
अपराधी की सोच अपराध करने वाली होती है तो साधु की सोच परोपकार करने की ।
यह सोच बदलने का कमाल ही था कि एक डाकू ,एक ऋषि बन गये,जिनको हम वाल्मिकी ऋषि के नाम से जानते हैं ।
महात्मा गाँधी जी को एक अंग्रेज द्धारा रेलवे स्टेशन पर फैंक देने के कारण बदली सोच का परिणाम था कि अंग्रेजों को भारत छोड़ने को मजबूर होना पड़ा ।

यही बात हमारे ऊपर भी लागू होती है कि हम क्या बनना चाहते थे या बनना चाहते हैं।
क्या हमारी सोच भी वैसी ही थी या है , जो हम बनना चाहते थे या चाहते हैं ।
अगर नहीं तो अपनी सोच बदलिये और बनिये अपनी ईच्छानुसार ।
इस दुनिया में सबसे ज्यादा मुश्किल काम अपनी सोच बदलना है ।सोच को बदलना और उसे वहीं टिकाये रखना एक कला है जिसे सीखा जा सकता है और कुछ समय तक निरंतर समय देना होता है ।

शेष अगले अंक में ...

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