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Aug 13, 2017

सोच - भाग्यविधाता जीवन की | Power of thinking

सोच - भाग्यविधाता  जीवन की.....


यह बह्रमांड ईश्वर की किसी न किसी सोच का ही परिणाम है । ईश्वर ने इस पृथ्वी में सोचने की यह ताकत केवल इंसान में ही दी है ।
हर इसांन का जीवन अपनी अपनी सोच का परिणाम है ।
मानव सभ्यता की विकास यात्रा इसका प्रमाण है ।यह इंसानी सोच से ही संभव हुआ है कि हम आधुनिक विकास से अपने जीवन स्तर को निरंतर ऊँचा कर पा रहे हैं।
हर इसांन की सोच देश, काल और परिस्थितियों से बदलती रहती है ।
सोच भी दो तरीके की होती है

एक स्थूल  सोच होती है ,जो हमारे मूड के हिसाब से बदलती रहती है ।जैसे- गुस्सा करना, आवेश में आकर नुकसान करना, सुखः दुःख महसूस करना , क्षणिक आवेश आदि
दूसरी सोच  सूक्ष्म सोच होती है। इससे ही जीवन को दिशा और दशा मिलती है। हम अपने जीवन में कैसे बनना चाहते हैं या बनते है?

सूक्ष्म सोच संस्कारों, परवरिश, पारिवारिक माहौल, शिक्षा, संगती,  दिमागी संतुलन और दिमागी खुराक से बनती है ।
दोनों सोचों का एक दूसरे पर गहरा असर पड़ता है।
सूक्ष्म सोच चिर स्थाई होती है और इसको बदलना आसान नही होता, किसी गंभीर घटना या दिल को चुभने जैसी बातों से इसमें बदलाव हो सकता है ।
हम जैसा सोचते हैं, हम वैसे ही बन जाते हैं।
यह सोच ही है जिसके कारण कोई व्यक्ति अपराधी बन जाता है तो कोई साधु या डाक्टर, तो कोई वैग्यानिक या दार्शनिक जैसे बन जाते हैं ।
आपकी सोच  जैसी है वैसे ही आपका दुनिया देखने का नजरिया बन जाता है ।
सोच चुम्बक जैसा काम करती है ।
जैसा आप सोचने लगते हैं,वैसे ही आपके काम होने लगते हैं, वैसीे ही आपको घटनायें घटित होते हुये दिखने लगती हैं, वैसे ही लोग भी आपको मिलने लगते हैं, वैसे ही परिणाम मिलने शुरू हो जाते हैं ।

अच्छे लोगों को अच्छे लोग मिलने लगते हैं, तो खराब आदतों और मानसिकता वालों को वैसे ही लोग मिल जाते हैं ।
आप जैसा बनना चाहते हैं वैसी ही सोच बनाइये, जीत आपकी सोच की ही होगी ।
जो लोग जैसे हैं , उनकी सोच वैसी ही है ।
अपराधी की सोच अपराध करने वाली होती है तो साधु की सोच परोपकार करने की ।
यह सोच बदलने का कमाल ही था कि एक डाकू ,एक ऋषि बन गये,जिनको हम वाल्मिकी ऋषि के नाम से जानते हैं ।
महात्मा गाँधी जी को एक अंग्रेज द्धारा रेलवे स्टेशन पर फैंक देने के कारण बदली सोच का परिणाम था कि अंग्रेजों को भारत छोड़ने को मजबूर होना पड़ा ।

यही बात हमारे ऊपर भी लागू होती है कि हम क्या बनना चाहते थे या बनना चाहते हैं।
क्या हमारी सोच भी वैसी ही थी या है , जो हम बनना चाहते थे या चाहते हैं ।
अगर नहीं तो अपनी सोच बदलिये और बनिये अपनी ईच्छानुसार ।
इस दुनिया में सबसे ज्यादा मुश्किल काम अपनी सोच बदलना है ।सोच को बदलना और उसे वहीं टिकाये रखना एक कला है जिसे सीखा जा सकता है और कुछ समय तक निरंतर समय देना होता है ।

शेष अगले अंक में ...

आपका शुभाकांक्षी...

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